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| |نمایشنامهها = | | |نمایشنامهها = |
| |فیلمنامهها = | | |فیلمنامهها = |
| |دیوان اشعار =مثنوى آیینى معراجنامه، مثنوى عاشورایى گنجینة الاسرار و نیز مخزن الدّور و گنجینة الاسرار | | |دیوان اشعار =مثنوى آیینى معراجنامه، مثنوى عاشورایى گنجینة الاسرار و نیز مخزن الدّور |
| |تخلص =عمّان | | |تخلص =عمّان |
| |فیلم(های) ساخته بر اساس اثر(ها)= | | |فیلم(های) ساخته بر اساس اثر(ها)= |
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| {{ب| گوشه چشمی مینماید گاهگاه|سوی مستان میکند، خوشخوش نگاه <ref> گنجینة الاسرار؛ ص 73- 79 گزینش اشعار.</ref> }} | | {{ب| گوشه چشمی مینماید گاهگاه|سوی مستان میکند، خوشخوش نگاه <ref> گنجینة الاسرار؛ ص 73- 79 گزینش اشعار.</ref> }} |
| {{پایان شعر}} | | {{پایان شعر}} |
| {| class="" style="margin: 0 auto; "
| |
| | class="b" |<span class="beyt"> گوید او چون باده خواران الست</span>
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| | style="width:2em;" |
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| | class="b" |<span class="beyt">هریک اندر وقت خود گشتند مست </span>
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| |-
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| | class="b" |<span class="beyt"> ز انبیا و اولیا، از خاص و عام</span>
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| | style="width:2em;" |
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| | class="b" |<span class="beyt">عهد هریک شد به عهد خود تمام </span>
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| |-
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| | class="b" |<span class="beyt"> نوبت ساقی سرمستان رسید</span>
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| | style="width:2em;" |
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| | class="b" |<span class="beyt">آنکه بد پا تا به سر مست، آن رسید </span>
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| |-
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| | class="b" |<span class="beyt"> آنکه بد منظور ساقی، مست شد</span>
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| | style="width:2em;" |
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| | class="b" |<span class="beyt">و آنکه دل از دست برد، از دست شد </span>
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| |-
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| | class="b" |<span class="beyt"> گرم شد بازار عشق ذو فنون</span>
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| | style="width:2em;" |
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| | class="b" |<span class="beyt">بو العجب عشقی! جنون اندر جنون </span>
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| |-
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| | class="b" |<span class="beyt"> خیره شد تقوی و زیبایی به هم</span>
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| | style="width:2em;" |
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| | class="b" |<span class="beyt">پنجه زد درد و شکیبایی به هم </span>
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| |-
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| | class="b" |<span class="beyt"> سوختن با ساختن آمد قرین</span>
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| | style="width:2em;" |
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| | class="b" |<span class="beyt">گشت محنت با تحمل، همنشین </span>
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| |-
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| | class="b" |<span class="beyt"> زجر و سازش متّحد شد، درد و صبر</span>
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| | style="width:2em;" |
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| | class="b" |<span class="beyt">نور و ظلمت متّفق شد، ماه و ابر </span>
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| |-
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| | class="b" |<span class="beyt"> عیش و غم مدغم <ref>مدغم شدن: درهم شدن.</ref> شد و تریاق و زهر</span>
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| | style="width:2em;" |
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| | class="b" |<span class="beyt">مهر و کین توأم شد و اشفاق <ref>اشفاق: محبت.</ref> و قهر <ref>قهر: عداوت.</ref> </span>
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| |-
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| | class="b" |<span class="beyt"> ناز معشوق و نیاز عاشقی</span>
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| | style="width:2em;" |
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| | class="b" |<span class="beyt">جور عذرا و رضای وامقی <ref>عذرا و وامق: دو دلداده. عذرا نام معشوقه وامق است که کنیزکی بود در زمان اسکندر ذو القرنین.</ref> </span>
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| |-
| |
| | class="b" |<span class="beyt"> گفت: اینک آمدم من ای کیا! <ref> کیا: پادشاه بزرگ.</ref> </span>
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| | style="width:2em;" |
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| | class="b" |<span class="beyt">گفت: از جان آرزومندم، بیا! </span>
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| |-
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| | class="b" |<span class="beyt"> لاجرم زد خیمه عشق بیقرین</span>
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| | style="width:2em;" |
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| | class="b" |<span class="beyt">در فضای ملک آن عشق آفرین </span>
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| |-
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| | class="b" |<span class="beyt"> کرد بر وی باز، درهای بلا</span>
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| | style="width:2em;" |
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| | class="b" |<span class="beyt">تا کشانیدش به دشت کربلا </span>
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| |-
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| | class="b" |<span class="beyt"> سرکشید از چار جانب فوج فوج</span>
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| | style="width:2em;" |
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| | class="b" |<span class="beyt">لشکر غم، همچنان کز بحر، موج </span>
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| |-
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| | class="b" |<span class="beyt"> یافت چون سر خیل مخموران خبر</span>
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| | style="width:2em;" |
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| | class="b" |<span class="beyt">کز خمار باده آید دردسر </span>
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| |-
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| | class="b" |<span class="beyt"> خلوت از اغیار شد پرداخته</span>
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| | style="width:2em;" |
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| | class="b" |<span class="beyt">وز رقیبان، خانه خالی ساخته </span>
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| |-
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| | class="b" |<span class="beyt"> محرمانِ رازِ خود را خواند، پیش</span>
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| | style="width:2em;" |
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| | class="b" |<span class="beyt">جمله را بنشاند، پیرامون خویش </span>
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| |-
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| | class="b" |<span class="beyt"> با لب خود گوششان انباز کرد</span>
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| | style="width:2em;" |
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| | class="b" |<span class="beyt">در ز صندوق حقیقت باز کرد </span>
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| |-
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| | class="b" |<span class="beyt"> جمله را کرد از شراب عشق، مست</span>
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| | style="width:2em;" |
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| | class="b" |<span class="beyt">یادشان آورد آن عهد الست </span>
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| |-
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| | class="b" |<span class="beyt"> گفت شاباش این دل آزادتان</span>
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| | style="width:2em;" |
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| | class="b" |<span class="beyt">باده خوردستید، بادا یادتان! </span>
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| |-
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| | class="b" |<span class="beyt"> گوشه چشمی مینماید گاهگاه</span>
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| | style="width:2em;" |
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| | class="b" |<span class="beyt">سوی مستان میکند، خوشخوش نگاه <ref> گنجینة الاسرار؛ ص 73- 79 گزینش اشعار.</ref> </span>
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| |}
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| {{شعر}} | | {{شعر}} |
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| {{ب| قصد جانان کرد و جان بر باد داد|رسم آزادی به مردان، یاد داد <ref> گنجینة الاسرار؛ ص 85- 89.</ref> }} | | {{ب| قصد جانان کرد و جان بر باد داد|رسم آزادی به مردان، یاد داد <ref> گنجینة الاسرار؛ ص 85- 89.</ref> }} |
| {{پایان شعر}}
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| {{شعر}}
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| {{ب| باز لیلی زد به گیسو شانه را|سلسله جنبان شد این دیوانه را }}
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| {{ب| باز دل افراشت از مستی علم|شد سپهدار علم، <ref>منظور حضرت ابا الفضل (ع) است.</ref> جَفّ القلم <ref>جفّ القلم: خشک شد قلم. کنایه از این است که اسرار را نباید ابراز کرد و بایستی دم در کشید.</ref> }}
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| {{ب| گشته با شور حسینی، نغمهگر|کسوت عباسیان، <ref>لباس عباسیان به رنگ سیاه بود.</ref> کرده به بر }}
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| {{ب| جانب اصحاب، تازان با خروش|مشکی از آب حقیقت پر، به دوش }}
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| {{ب| کرده از شطّ یقین، آن مشک پر|مست و عطشان همچو آب آور شتر }}
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| {{ب| تشنهی آبش، حریفان سر به سر|خود ز مجموع حریفان، تشنهتر }}
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| {{ب| چرخ ز استسقای آبش در طپش|برده او بر چرخ بانگ العطش <ref>کنایه از عطش زیاد و تشنگی خارقالعادهای عالم هستی نسبت به آن چشمهی حیاتبخش است. در حالی که به
| |
| ظاهر بانگ العطش او به چرخ میرسید!</ref> }}
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| {{ب| ای ز شطّ سوی محیط آورده آب|آب خود را ریختی، واپس شتاب }}
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| {{ب| نیست صاحب همّتی در نشأتین <ref>کنایه از دنیا و آخرت است.</ref> |هم قدم عبّاس را، بعد از حسین }}
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| {{ب| بُد به عشاق حسینی، پیشرو|پاک خاطر آی و پاک اندیش رو }}
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| {{ب| روز عاشورا به چشم پر ز خون|مشک بر دوش آمد از شطّ چون برون }}
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| {{ب| شد به سوی تشنه کامان، رهسپر|تیر باران بلا را شد سپر }}
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| {{ب| پس فرو بارید بر وی تیر تیز|مشک شد بر حالت او اشک ریز! }}
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| {{ب| اشک چندان ریخت بر وی چشم مشک|تا که چشم مشک، خالی شد ز اشک! }}
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| {{ب| تا قیامت تشنه کامان ثواب|میخورند از رشحهی آن مشک، آب }}
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| {{ب| بر زمین آب تعلّق پاک ریخت|وز تعیّن بر سر آن، خاک ریخت }}
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| {{ب| هستیش را دست از مستی فشاند|جز حسین اندر میان، چیزی نماند <ref> گنجینة الاسرار؛ ص 94- 101 گزینش اشعار.</ref> }}
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| {{پایان شعر}} | | {{پایان شعر}} |
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خط ۳۷۴: |
خط ۲۵۰: |
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| {{ب| من تو را صیقل دهم از آگهی|تا تو آن آیینه را صیقل دهی <ref>گنجینة الاسرار؛ ص 126- 129.</ref> }} | | {{ب| من تو را صیقل دهم از آگهی|تا تو آن آیینه را صیقل دهی <ref>گنجینة الاسرار؛ ص 126- 129.</ref> }} |
| {{پایان شعر}}
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| {{شعر}}
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| {{ب| خواهرش بر سینه و بر سر زنان|رفت تا گیرد برادر را عنان }}
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| {{ب| سیل اشکش بست بر شه، راه را|دود آهش کرد حیران، شاه را }}
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| {{ب| در قفای شاه رفتی هر زمان|بانگ مهلًا مهلًاش بر آسمان }}
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| {{ب| کای سوار سرگران کم کن شتاب|جان من لختی سبکتر زن رکاب }}
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| {{ب| تا ببوسم آن رخ دلجوی تو|تا ببویم آن شکنج موی تو }}
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| {{ب| شه سراپا گرم شوق و مست ناز|گوشهی چشمی به آن سو کرد باز }}
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| {{ب| دید مشکین مویی از جنس زنان|بر فلک دستی و دستی بر عنان }}
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| {{ب| زن مگو، مرد آفرین روزگار|زن مگو بنت الجلال، أخت الوقار }}
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| {{ب| زن مگو، خاک درش نقش جبین|زن مگو دست خدا در آستین }}
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| {{ب| پس ز جان بر خواهر استقبال کرد|تا رخش بوسد، الف را دال کرد <ref>کنایه از خم کردن قامت است.</ref> }}
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| {{ب| همچو جان خود، در آغوشش کشید|این سخن آهسته بر گوشش کشید: }}
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| {{ب| کای عنان گیر من آیا زینبی؟|یا که آه دردمندان در شبی؟ }}
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| {{ب| پیش پای شوق، زنجیری مکن|راه عشقست این، عنانگیری مکن }}
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| {{ب| با تو هستم جان خواهر، همسفر|تو به پا این راه کوبی، من به سر }}
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| {{ب| خانه سوزان را تو صاحب خانه باش|با زنان در همرهی، مردانه باش }}
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| {{ب| جان خواهر! در غمم زاری مکن|با صدا بهرم عزاداری مکن }}
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| {{ب| معجر از سر، پرده از رخ، وا مکن|آفتاب و ماه را رسوا مکن }}
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| {{ب| هست بر من ناگوار و ناپسند|از تو زینب گر صدا گردد بلند }}
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| {{ب| هرچه باشد تو علی را دختری|ماده شیرا! کی کم از شیر نری؟! }}
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| {{ب| با زبان زینبی شاه آن چه گفت|با حسینی گوش، زینب میشنفت }}
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| {{ب| با حسینی لب هرآنچ او گفت راز|شه به گوش زینبی بشنید باز }}
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| {{ب| گوش عشق، آری زبان خواهد ز عشق|فهم عشق آری بیان خواهد ز عشق }}
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| {{ب| با زبان دیگر این آواز نیست|گوش دیگر محرم اسرار نیست }}
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| {{ب| ای سخنگو، لحظهای خاموش باش|ای زبان، از پای تا سرگوش باش }}
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| {{ب| تا ببینم از سر صدق و صواب|شاه را، زینب چه میگوید جواب }}
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| {{ب| گفت زینب در جواب آن شاه را:|کای فروزان کرده مهر و ماه را }}
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| {{ب| عشق را، از یک مشیمه <ref>مشیمه: بچهدان، پردهای که کودک قبل از به دنیا آمدن در آن قرار دارد.</ref> زادهایم|لب به یک پستان غم بنهادهایم }}
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| {{ب| تربیت بودهست بر یک دوشمان|پرورش در جیب یک آغوشمان }}
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| {{ب| تا کنیم این راه را مستانه طی|هر دو از یک جام خوردستیم می }}
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| {{ب| هر دو در انجام طاعت کاملیم|هر یکی امر دگر را حاملیم }}
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| {{ب| تو شهادت جستی ای سبط رسول|من اسیری را به جان کردم قبول }}
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| {{ب| خودنمایی کن که طاقت طاق شد|جان، تجلّی تو را مشتاق شد }}
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| {{ب| حالتی زین به، برای سیر نیست|خودنمایی کن در اینجا غیر نیست }}
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| {{ب| شرحی ای صدر جهان این سینه را|عکسیای دارای حسن، آیینه را }}
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| {{ب| قابل اسرار دید آن سینه را|مستعّدِ جلوه، آن آیینه را }}
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| {{ب| ملک هستی منهدم یکباره کرد|پردهی پندار او را پاره کرد }}
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| {{ب| معنی اندر لوح صورت، نقش بست|آن چه از جان خاست اندر دل نشست }}
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| {{ب| خیمه زد در ملک جانش شاه غیب|شسته شد ز آب یقینش زنگ ریب }}
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| {{ب| معنی خود را به چشم خویش دید|صورت آینده را از پیش دید }}
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| {{ب| آفتابی کرد در زینب ظهور|ذرّهیی ز آن، آنش وادیّ طور }}
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| {{ب| شد عیان در طور جانش رایتی|خَرَّ موسی صَعقاً <ref> اشاره است به آیهی 143 سورهی اعراف: «وَ لَمَّا جاءَ مُوسی لِمِیقاتِنا وَ کَلَّمَهُ رَبُّهُ قالَ رَبِّ أَرِنِی أَنْظُرْ إِلَیْکَ قالَ لَنْ تَرانِی وَ لکِنِ انْظُرْ إِلَی الْجَبَلِ فَإِنِ اسْتَقَرَّ مَکانَهُ فَسَوْفَ تَرانِی فَلَمَّا تَجَلَّی رَبُّهُ لِلْجَبَلِ جَعَلَهُ دَکًّا وَ خَرَّ مُوسی صَعِقاً فَلَمَّا أَفاقَ قالَ سُبْحانَکَ تُبْتُ إِلَیْکَ وَ أَنَا أَوَّلُ الْمُؤْمِنِینَ.» چون موسی با هفتاد نفر از قومش به وعدهگاه ما آمد و خدا با وی سخن گفت، عرض کرد: خدایا خود را به من آشکار بنما که تو را مشاهده کنم. خدا فرمود: هرگز مرا نخواهی دید و لیکن به کوه بنگر اگر آن به جای خود برقرار تواند ماند تو نیز مرا خواهی دید. پس نور حق به کوه تجلّی کرد کوه را متلاشی ساخت و موسی بیهوش افتاد سپس که به هوش آمد عرض کرد: خدایا تو منزّهی، به درگاه تو توبه کردم و منم نخستین ایمان آورندگان.</ref> ز آن آیتی }}
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| {{ب| عین زینب دید زینب را به عین|بلکه با عین حسین عین حسین }}
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| {{ب| طلعت جان را به چشم جسم دید|در سراپای مسمّی اسم دید }}
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| {{ب| غیب بین گردید با چشم شهود|خواند بر لوح وفا، نقش عهود }}
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| {{ب| دید تابی در خود و بیتاب شد|دیدهی خورشید بین پر آب شد }}
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| {{ب| صورت حالش پریشانی گرفت|دست بیتابی به پیشانی گرفت }}
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| {{ب| خواست تا بر خرمن جنس زنان|آتش اندازد «انَا الاعلی» زنان }}
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| {{ب| دید شه لب را به دندان میگزد|کز تو این جا پردهداری میسزد }}
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| {{ب| رخ ز بیتابی، نمیتابی چرا؟|در حضور دوست، بیتابی چرا؟ }}
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| {{ب| کرد خودداری ولی تابش نبود|ظرفیت در خورد آن آبش نبود }}
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| {{ب| از تجلّیهای آن سرو سهی|خواست تا زینب کند قالب تهی }}
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| {{ب| سایهسان بر پای آن پاک اوفتاد|صیحهزن غش کرد و بر خاک اوفتاد }}
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| {{ب| از رکاب ای شهسوار حقپرست|پای خالی کن که زینب شد ز دست }}
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| {{ب| شد پیاده، بر زمین زانو نهاد|بر سر زانو، سر بانو نهاد }}
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| {{ب| پس در آغوشش نشانید و نشست|دست بر دل زد، دل آوردش به دست }}
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| {{ب| گفتوگو کردند با هم متّصل|این به آن و آن به این، از راه دل }}
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| {{ب| دیگر اینجا گفتوگو را راه نیست|پرده افکندند و کس را راه نیست <ref>گنجینة الاسرار؛ ص 130- 137.</ref> }}
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| {{پایان شعر}} | | {{پایان شعر}} |
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خط ۷۱۷: |
خط ۴۷۷: |
| {{پایان شعر}} | | {{پایان شعر}} |
| ===در جانبازى حضرت عباس(ع)=== | | ===در جانبازى حضرت عباس(ع)=== |
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| {{شعر}} | | {{شعر}} |
| {{ب| باز لیلى زد به گلسیو شانه را | سلسله جنبان شد این دیوانه را }} | | {{ب| باز لیلی زد به گیسو شانه را|سلسله جنبان شد این دیوانه را }} |
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| {{ب| سنگ بردارید اى فرزانگان | اى هجوم آرنده بر دیوانگان }} | | {{ب| باز دل افراشت از مستی علم|شد سپهدار علم، <ref>منظور حضرت ابا الفضل (ع) است.</ref> جَفّ القلم <ref>جفّ القلم: خشک شد قلم. کنایه از این است که اسرار را نباید ابراز کرد و بایستی دم در کشید.</ref> }} |
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| {{ب| از چه بر دیوانهتان آهنگ نیست؟ | او مهیا شد شما را سنگ نیست؟! }} | | {{ب| گشته با شور حسینی، نغمهگر|کسوت عباسیان، <ref>لباس عباسیان به رنگ سیاه بود.</ref> کرده به بر }} |
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| {{ب| عقل را با عشق تاب جنگ کو؟ | اندرین جا سنگ باید سنگ کو؟ }} | | {{ب| جانب اصحاب، تازان با خروش|مشکی از آب حقیقت پر، به دوش }} |
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| {{ب| باز دل افراشت از مستى علم | شد سپهدار علم جفَّ القلم }} | | {{ب| کرده از شطّ یقین، آن مشک پر|مست و عطشان همچو آب آور شتر }} |
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| {{ب| گشته با شور حسینى نغمهگر | کسوت عبّاسیان کرده به بر }} | | {{ب| تشنهی آبش، حریفان سر به سر|خود ز مجموع حریفان، تشنهتر }} |
|
| |
|
| {{ب| جانب اصحاب تازان با خروش | مشکى از آب حقیقت پر به دوش }} | | {{ب| چرخ ز استسقای آبش در طپش|برده او بر چرخ بانگ العطش <ref>کنایه از عطش زیاد و تشنگی خارقالعادهای عالم هستی نسبت به آن چشمهی حیاتبخش است. در حالی که به |
| | ظاهر بانگ العطش او به چرخ میرسید!</ref> }} |
|
| |
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| {{ب| کرده از شطّ یقیق آن مشک پر | مست و عطشان همچو آب آور شتر }} | | {{ب| ای ز شطّ سوی محیط آورده آب|آب خود را ریختی، واپس شتاب }} |
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| {{ب| تشنۀ آبش حریفان سر به سر | خود ز مجموع حریفان تشنهتر }} | | {{ب| نیست صاحب همّتی در نشأتین <ref>کنایه از دنیا و آخرت است.</ref> |هم قدم عبّاس را، بعد از حسین }} |
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| {{ب| چرخ ز استسقاى آبش در طپش | برده او بر چرخ بانگ العطش }} | | {{ب| بُد به عشاق حسینی، پیشرو|پاک خاطر آی و پاک اندیش رو }} |
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| {{ب| اى ز شط سوى محیط آورده آب | آب خود را ریختى وا پس شتاب }} | | {{ب| روز عاشورا به چشم پر ز خون|مشک بر دوش آمد از شطّ چون برون }} |
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| {{ب| آب آرى سوى بحر موجخیز | پیش ازین آبت مریز آبت بریز <ref>همان، ص 94 و 95</ref> ... }} | | {{ب| شد به سوی تشنه کامان، رهسپر|تیر باران بلا را شد سپر }} |
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| {{ب| لاجرم آن قدوه اهل نیاز | آن به میدان محبت یکه تاز }} | | {{ب| پس فرو بارید بر وی تیر تیز|مشک شد بر حالت او اشک ریز! }} |
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| {{ب| آن قوى پشت خدابینان ازو | و آن مشوش حال بیدینان ازو }} | | {{ب| اشک چندان ریخت بر وی چشم مشک|تا که چشم مشک، خالی شد ز اشک! }} |
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| {{ب| موسى توحید را هارون عهد | از مریدان جمله کاملتر به جهد }} | | {{ب| تا قیامت تشنه کامان ثواب|میخورند از رشحهی آن مشک، آب }} |
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| {{ب| طالبان راه حق را بُد دلیل | رهنماى جمله بر شاه جلیل }} | | {{ب| بر زمین آب تعلّق پاک ریخت|وز تعیّن بر سر آن، خاک ریخت }} |
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| {{ب| بُد به عشّاق حسینى پیشرو | پاک خاطر آى و پاک اندیشرو }} | | {{ب| هستیش را دست از مستی فشاند|جز حسین اندر میان، چیزی نماند <ref> گنجینة الاسرار؛ ص 94- 101 گزینش اشعار.</ref> }} |
| | {{پایان شعر}} |
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| {{ب| مىگرفتى از شط توحید آب | تشنگان را مىرساندى با شتاب }}
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| {{ب| عاشقان را بود آب کار ازو | رهروان را رونق بازار ازو }}
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| {{ب| روز عاشورا به چشم پر ز خون | مشک بر دوش آمد از شط چون برون }}
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| {{ب| شد به سوى تشنهکامان رهسپر | تیرباران بلا را شد سپر }}
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| |
| {{ب| پس فرو بارید بر وى تیر تیز | مشک شد بر حالت او اشکریز }}
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| {{ب| اشک چندان ریخت بروى چشم مشک | تا که چشم مشک خالى شد ز اشک }}
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| |
| {{ب| تا قیامت تشنهکامان ثواب | مىخورد از رشحه آن مشک آب }}
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| |
| {{ب| بر زمین آب تعلق پاک ریخت | هز تعیّن بر سر آن خاک ریخت }}
| |
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| |
| {{ب| هستىاش را دست از مستى فشاند | جز حسین اندر میان چیزى نماند <ref>همان، ص 100 و 101</ref> ... }}
| |
| {{پایان شعر}}
| |
| ===در جانبازى حضرت على اکبر(ع)=== | | ===در جانبازى حضرت على اکبر(ع)=== |
| {{شعر}} | | {{شعر}} |
خط ۸۸۲: |
خط ۶۲۸: |
|
| |
|
| ===در عنانگیرى حضرت زینب(س)=== | | ===در عنانگیرى حضرت زینب(س)=== |
| | |
| {{شعر}} | | {{شعر}} |
| {{ب| خواهرش بر سینه و بر سر زنان | رفت تا گیرد برادر را عنان }} | | {{ب| خواهرش بر سینه و بر سر زنان|رفت تا گیرد برادر را عنان }} |
| | |
| | {{ب| سیل اشکش بست بر شه، راه را|دود آهش کرد حیران، شاه را }} |
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| | {{ب| در قفای شاه رفتی هر زمان|بانگ مهلًا مهلًاش بر آسمان }} |
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| | {{ب| کای سوار سرگران کم کن شتاب|جان من لختی سبکتر زن رکاب }} |
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| {{ب| سیل اشکش بست بر شه راه را | دود آهش کرد حیران شاه را }} | | {{ب| تا ببوسم آن رخ دلجوی تو|تا ببویم آن شکنج موی تو }} |
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| {{ب| در قفاى شاه رفتى هر زمان | بانگ مهلا مهلاش بر آسمان }} | | {{ب| شه سراپا گرم شوق و مست ناز|گوشهی چشمی به آن سو کرد باز }} |
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| {{ب| کاى سوار سرگران کم کن شتاب | جان من لختى سبکتر زن رکاب }} | | {{ب| دید مشکین مویی از جنس زنان|بر فلک دستی و دستی بر عنان }} |
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| {{ب| تا ببوسم آن رخ دلجوى تو | تا ببویم آن شکنج موى تو }} | | {{ب| زن مگو، مرد آفرین روزگار|زن مگو بنت الجلال، أخت الوقار }} |
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| {{ب| شه سرا پا گرم و شوق و مست ناز | گوشه چشمى به آن سو کرد باز }} | | {{ب| زن مگو، خاک درش نقش جبین|زن مگو دست خدا در آستین }} |
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| {{ب| دید مشکین مویى از جنس زنان | بر فلک دستى و دستى بر عنان }} | | {{ب| پس ز جان بر خواهر استقبال کرد|تا رخش بوسد، الف را دال کرد <ref>کنایه از خم کردن قامت است.</ref> }} |
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| {{ب| زن مگو مردآفرین روزگار | زن مگو بنت الجلال اخت الوقار }} | | {{ب| همچو جان خود، در آغوشش کشید|این سخن آهسته بر گوشش کشید: }} |
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| {{ب| زن مگو خاک درش نقش جبین | زن مگو دست خدا در آستین <ref>همان، ص 130 و 131</ref> ... }} | | {{ب| کای عنان گیر من آیا زینبی؟|یا که آه دردمندان در شبی؟ }} |
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| {{ب| پس ز جان بر خواهر استقبال کرد | تا رخش بوسد الف را دال کرد }} | | {{ب| پیش پای شوق، زنجیری مکن|راه عشقست این، عنانگیری مکن }} |
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| {{ب| همچو جان خود در آغوشش کشید | این سخن آهسته در کوشش کشید }} | | {{ب| با تو هستم جان خواهر، همسفر|تو به پا این راه کوبی، من به سر }} |
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| {{ب| کاى عنانگیر من آیا زینبى؟ | یا که آه دردمندان در شبى؟ }} | | {{ب| خانه سوزان را تو صاحب خانه باش|با زنان در همرهی، مردانه باش }} |
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| {{ب| پیش پاى شوق زنجیرى مکن | راه عشق است این عنانگیرى مکن }} | | {{ب| جان خواهر! در غمم زاری مکن|با صدا بهرم عزاداری مکن }} |
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| {{ب| با تو هستم جان خواهر همسفر | تو به پا این راه کوبى من به سر... }} | | {{ب| معجر از سر، پرده از رخ، وا مکن|آفتاب و ماه را رسوا مکن }} |
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| {{ب| هست بر من ناگوار و ناپسند | از تو زینب گر صدا گردد بلند }} | | {{ب| هست بر من ناگوار و ناپسند|از تو زینب گر صدا گردد بلند }} |
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| {{ب| هرچه باشد تو على را دخترى | ماده شیرا کى کم از شیر نرى؟ }} | | {{ب| هرچه باشد تو علی را دختری|ماده شیرا! کی کم از شیر نری؟! }} |
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| {{ب| با زبان زینبى شاه آن چه گفت | با حسینى گوش زینب مىشنفت }} | | {{ب| با زبان زینبی شاه آن چه گفت|با حسینی گوش، زینب میشنفت }} |
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| {{ب| با حسینى لب هر آنچ او کرد راز | شه به گوش زینبى بشنید باز }} | | {{ب| با حسینی لب هرآنچ او گفت راز|شه به گوش زینبی بشنید باز }} |
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| {{ب| گوش عشق آرى زبان خواهد ز عشق | فهم عشق آرى بیان خواهد ز عشق }} | | {{ب| گوش عشق، آری زبان خواهد ز عشق|فهم عشق آری بیان خواهد ز عشق }} |
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| {{ب| با زبان دیگر این آواز نیست | گوش دیگر محرم این راز نیست }} | | {{ب| با زبان دیگر این آواز نیست|گوش دیگر محرم اسرار نیست }} |
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| {{ب| اى سخنگو لحظهاى خاموش باش | اى زبان از پاى تا سر گوش باش }} | | {{ب| ای سخنگو، لحظهای خاموش باش|ای زبان، از پای تا سرگوش باش }} |
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| {{ب| نت ببینم از سر صدق و صواب | شاه را زینب چه مىگوید جواب؟ }} | | {{ب| تا ببینم از سر صدق و صواب|شاه را، زینب چه میگوید جواب }} |
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| {{ب| گفت زینب در جواب آن شاه را | کاى فروزان کرده مهر و ماه را }} | | {{ب| گفت زینب در جواب آن شاه را:|کای فروزان کرده مهر و ماه را }} |
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| {{ب| عشق را از یک مشیمه زادهایم | لب به یک مشیمه زادهایم }} | | {{ب| عشق را، از یک مشیمه <ref>مشیمه: بچهدان، پردهای که کودک قبل از به دنیا آمدن در آن قرار دارد.</ref> زادهایم|لب به یک پستان غم بنهادهایم }} |
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| {{ب| تربیت بودهست بر یک دوشمان | پرورش در جیب یک آغوشِمان }} | | {{ب| تربیت بودهست بر یک دوشمان|پرورش در جیب یک آغوشمان }} |
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| {{ب| تا کنیم این راه را مستانه طى | هردو از یک جام خوردستیم مى }} | | {{ب| تا کنیم این راه را مستانه طی|هر دو از یک جام خوردستیم می }} |
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| {{ب| هردو در انجام طاعت کاملیم | هر کى امر دگر را حاملیم }} | | {{ب| هر دو در انجام طاعت کاملیم|هر یکی امر دگر را حاملیم }} |
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| {{ب| تو شهادت جستىاى سبط رسول | من اسیرى را به جان کردم قبول <ref>همان، ص 132 تا 134</ref> ... }} | | {{ب| تو شهادت جستی ای سبط رسول|من اسیری را به جان کردم قبول }} |
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| {{ب| قابل اسرار دید آن سینه را | مستعدِّ جلوه آن آیینه را }} | | {{ب| خودنمایی کن که طاقت طاق شد|جان، تجلّی تو را مشتاق شد }} |
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| {{ب| خیمه زد در ملک جانش شاه غیب | شسته شد ز آب یقینش زنگ ریب }} | | {{ب| حالتی زین به، برای سیر نیست|خودنمایی کن در اینجا غیر نیست }} |
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| {{ب| معنى خود را به چشم خویش دید | صورت آینده را از پیش دید }} | | {{ب| شرحی ای صدر جهان این سینه را|عکسیای دارای حسن، آیینه را }} |
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| {{ب| آفتابى کرد در زینب ظهور | ذّرهاى ز آن آتش وادىِّ }} | | {{ب| قابل اسرار دید آن سینه را|مستعّدِ جلوه، آن آیینه را }} |
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| {{ب| شد عیان در جانش رایتى | «خَرَّ موسى صعقا» <ref>آیه 143 از سوره اعراف.</ref> ز آن آیتى }} | | {{ب| ملک هستی منهدم یکباره کرد|پردهی پندار او را پاره کرد }} |
| | {{ب| معنی اندر لوح صورت، نقش بست|آن چه از جان خاست اندر دل نشست }} |
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| | {{ب| خیمه زد در ملک جانش شاه غیب|شسته شد ز آب یقینش زنگ ریب }} |
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| {{ب| عین زینب دید زینب را به عین | بلکه با عین حسین عین حسین }} | | {{ب| معنی خود را به چشم خویش دید|صورت آینده را از پیش دید }} |
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| {{ب| طلعت جان را به چشم جسم دید | در سراپاى مسمىّ اسم دید... <ref>همان، ص 136.</ref> }} | | {{ب| آفتابی کرد در زینب ظهور|ذرّهیی ز آن، آنش وادیّ طور }} |
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| {{ب| دید تابى در خود و بیتاب شد | دیده خورشید بین پر آب شد }} | | {{ب| شد عیان در طور جانش رایتی|خَرَّ موسی صَعقاً <ref> اشاره است به آیهی 143 سورهی اعراف: «وَ لَمَّا جاءَ مُوسی لِمِیقاتِنا وَ کَلَّمَهُ رَبُّهُ قالَ رَبِّ أَرِنِی أَنْظُرْ إِلَیْکَ قالَ لَنْ تَرانِی وَ لکِنِ انْظُرْ إِلَی الْجَبَلِ فَإِنِ اسْتَقَرَّ مَکانَهُ فَسَوْفَ تَرانِی فَلَمَّا تَجَلَّی رَبُّهُ لِلْجَبَلِ جَعَلَهُ دَکًّا وَ خَرَّ مُوسی صَعِقاً فَلَمَّا أَفاقَ قالَ سُبْحانَکَ تُبْتُ إِلَیْکَ وَ أَنَا أَوَّلُ الْمُؤْمِنِینَ.» چون موسی با هفتاد نفر از قومش به وعدهگاه ما آمد و خدا با وی سخن گفت، عرض کرد: خدایا خود را به من آشکار بنما که تو را مشاهده کنم. خدا فرمود: هرگز مرا نخواهی دید و لیکن به کوه بنگر اگر آن به جای خود برقرار تواند ماند تو نیز مرا خواهی دید. پس نور حق به کوه تجلّی کرد کوه را متلاشی ساخت و موسی بیهوش افتاد سپس که به هوش آمد عرض کرد: خدایا تو منزّهی، به درگاه تو توبه کردم و منم نخستین ایمان آورندگان.</ref> ز آن آیتی }} |
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| {{ب| صورت حالش پریشانى گرفت | دست بیتابى به پیشانى گرفت }} | | {{ب| عین زینب دید زینب را به عین|بلکه با عین حسین عین حسین }} |
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| {{ب| خواست تا بر خرمن جنس زنان | آتش اندازد آنا الاعلى زنان }} | | {{ب| طلعت جان را به چشم جسم دید|در سراپای مسمّی اسم دید }} |
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| {{ب| دید شه لب را به دندان مىگزد | کز تو اینجا پردهدارى مىسزد... }} | | {{ب| غیب بین گردید با چشم شهود|خواند بر لوح وفا، نقش عهود }} |
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| {{ب| از تجلىهاى آن سرو سهى | خواست تا زینب کند قالب تهى }} | | {{ب| دید تابی در خود و بیتاب شد|دیدهی خورشید بین پر آب شد }} |
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| {{ب| سایهسان بر پاى آن پاک اوفتاد | صیحهزن غش کرد و بر خاک اوفتاد }} | | {{ب| صورت حالش پریشانی گرفت|دست بیتابی به پیشانی گرفت }} |
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| {{ب| از رکاب اى شهسوار حقپرست | پاى خالى کن که زینب شد ز دست }} | | {{ب| خواست تا بر خرمن جنس زنان|آتش اندازد «انَا الاعلی» زنان }} |
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| {{ب| شد پیاده بر زمین زانو نهاد | بر سر زانو سر بانو نهاد }} | | {{ب| دید شه لب را به دندان میگزد|کز تو این جا پردهداری میسزد }} |
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| {{ب| پس در آغوشش نشانید و نشست | دست بر دل زد آوردش به دست }} | | {{ب| رخ ز بیتابی، نمیتابی چرا؟|در حضور دوست، بیتابی چرا؟ }} |
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| {{ب| گفتگو کردند با هم متصل | این به آن و آن به این از راه حل }} | | {{ب| کرد خودداری ولی تابش نبود|ظرفیت در خورد آن آبش نبود }} |
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| {{ب| دیگر اینجا گفتگو را راه نیست | پرده افکندند و کس آگاه نیست <ref>همان، ص 136 و 137.</ref> }} | | {{ب| از تجلّیهای آن سرو سهی|خواست تا زینب کند قالب تهی }} |
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| | {{ب| سایهسان بر پای آن پاک اوفتاد|صیحهزن غش کرد و بر خاک اوفتاد }} |
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| | {{ب| از رکاب ای شهسوار حقپرست|پای خالی کن که زینب شد ز دست }} |
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| | {{ب| شد پیاده، بر زمین زانو نهاد|بر سر زانو، سر بانو نهاد }} |
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| | {{ب| پس در آغوشش نشانید و نشست|دست بر دل زد، دل آوردش به دست }} |
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| | {{ب| گفتوگو کردند با هم متّصل|این به آن و آن به این، از راه دل }} |
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| | {{ب| دیگر اینجا گفتوگو را راه نیست|پرده افکندند و کس آگاه نیست <ref>گنجینة الاسرار؛ ص 130- 137.</ref> }} |
| {{پایان شعر}} | | {{پایان شعر}} |
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| ==منابع== | | ==منابع== |
خط ۹۸۴: |
خط ۷۵۳: |
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| | [[رده:شاعران سده سیزدهم]] |
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| <references /> | | <references /> |